पौराणिक कथाओं में बहुत ही अद्भुत एक भील भीलनी की कथा है. चण्ड नामक एक सरल हृदय का भील था वह जंगल में रहता था। वहां उस जंगल में उसने देखा की एक टूटा फूटा पुराना शिवालय है उसमें कोई पूजा नहीं करता था। चण्ड भील ने उस शिवलिंग को उठाकर अपने घर ले आया और किसी से पूछ कर जल, चिता, भस्म बेलपत्र और धतूरे के फूल आदि से श्रद्धा भक्तिपूर्ण भगवान शिव जी की पूजा करने लगा।
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जल, बेलपत्र, धतूरे के फूल तो जंगल में थे ही और वह शमशान जाकर वह 7 दिनों के लिए चिता भस्म की पोटली बांध लाता। एक दिन-रात को इतनी जोर की वर्षा हुई कि शमशान की सारी राख बह गई उसी दिन चण्ड की पूजा के लिए लाई हुई चिता भस्म समाप्त हो गई थी। उसने बहुत प्रयास किया कोसों भटक आया किंतु कहीं भी चीता की भस्म नहीं मिली। उसके मन में बड़ा ही दुख था। आज भगवान की पूजा कैसे होगी ! उसके नेत्रोंसे आंसू बहने लगे और वह सिर पकड़ कर बैठ गया उसकी यह दशा देखकर चण्ड पत्नी भीलनी ने विनय से पूछा आप आज इतने दुखी क्यों हैं ?

भील ने कहा— क्या बताऊं मैं बड़ा अभागा हूं आज कहीं भी चिता की भस्म नहीं मिली आज भगवान की पूजा कैसे होगी भला पूजा किए बिना मैं जल कैसे पी सकता हूं आज भगवान बिना पूजा के रहेंगे। पति की यह दुख भरी बात सुनकर भीलनी को एक युक्ति सूची और बोली—‘ बस इतनी सी बात के लिए आप इतने व्याकुल हैं ? आप स्नान कीजिए चिता भस्म अभी मिल जाएगी।
इतना कहकर भीलनी वहां से चल दी और द्वार के सम्मुख थोड़ी दूरी पर एक पीपल का वृक्ष था वहां जाकर उसने मिट्टी की एक बेदी बनाई और झोपड़ी का सब सामान निकाल – निकालकर उस वृक्ष के नीचे रखने लगी। पत्नी की इस चेष्टा को देखकर चण्ड ने पूछा तुम यह सब क्या कर रही हो और वह हक्का-बक्का होकर पत्नी की ओर देखने लगा उसको कुछ भी समझ में नहीं आया।
भीलनी का अद्भुत त्याग
चण्ड के पूछने पर भीलनी बोली– आप जल्दी से स्नान करके भगवान को पीपल के नीचे वेदी पर बैठा दीजिए। झोपड़ी तो दूसरी आज आप संध्या तक बना ही लेंगे उसमें अग्नि लगाकर मैं जल जाती हूं आपके भगवान की पूजा के लिए बहुत दिनों के लिए चिताभस्म हो जाएगी। जिस निरपेक्षासे ( बिना किसी चाह के) भील वन पशुओं का आखेट करता था उसी निरपेक्षासे से भीलनी अपने शरीर की आहुति देने की बात कर रही थी जैसे कि वह एक साधारण खेल करने जा रही हैं।
पत्नी की यह बात सुनकर चण्ड ने पत्नी के मुख की ओर देखा पत्नी के त्याग, प्रेम और भक्तिने उसे प्रेम विह्वल कर दिया। चण्ड भरे कंठ से अपनी पत्नी से कहा — शरीर ही सुख, धर्म और पुण्य का कारण है तुम अपने शरीर को मत जलाओ। भीलनी ने पति के चरणोंपर सिर रखकर कहा — मेरे स्वामी एक दिन तो मैं मरूंगी ही। मेरे शरीर भगवान की सेवा में लगे, इससे बड़ा पुण्य और क्या होगा मैं बड़ी भाग्यवती हूं कि मेरा शरीर भगवानकी पूजा में लगेगा मुझे रोको मत ! आज्ञा दो !’ भीलके नेत्रों से आंसू बहने लगे वह बोलने में असमर्थ हो गया।
भीलनी की प्रार्थना
भीलनी ने फिर स्नान किया भगवान शिव को पीपल के नीचेकी वेदी पर बैठाया और झोपड़ी में अग्नि लगा दी। पति को पुनः प्रणाम करके भगवान शंकर की स्तुति करने लगी। श्रद्धा. पातिव्रत्य एवं त्याग ने उसके हृदय को शुद्ध बना दिया। उसके सारे आवरण ध्वस्त हो गए। विशुद्ध ज्ञान तो अन्तः करण में ही है। उस दिव्य ज्ञान से परिपूर्ण उसकी वाणी प्रेम से गदगद हो रही थी।
हे प्रभो ! ना तो मैं कुबेरका पद चाहती हूं; ना स्वर्ग, ना ब्रह्मलोक, और ना मोक्ष ही। मेरे चाहे जितने जन्म हो मैं सदा आपके चरणकमलोंकी रज की भ्रमरी रहूं। आपके चरणों में मेरा नित्य अनुराग बना रहे। सर्वोच्च वर्णमें जन्म लेने, संपूर्ण शास्त्र विचार में समर्थ होने, विद्या पढ़ने आदि से क्या लाभ जिसका चित परमेश्वर की भक्ति में लगा है उससे अधिक त्रिभुवन में और कौन धन्य है। सरकार भगवान शिव की प्रार्थना करते हुए प्रज्वलित अग्नि में प्रवेश किया। त्यागमयी भीलनी का शरीर भस्म हो गया।
चण्डने स्नान किया फिर पुष्प एकत्र किया जल डालकर थोड़ी सी चिताभस्म शीतल करके उससे पूजा की। आज उसके हृदय में अपूर्व भाव था अंतरमन में पत्नी के त्यागने प्रेम की धारा प्रवाहित कर दी थी। विद्या लगाकर वह उम्मत की भांति भगवान के सम्मुख नृत्य करने खड़ा हुआ। आज से पूर्व वे दोनों पति-पत्नी साथ मिलकर भगवान के समझ नाचते थे। किंतु आज वह अकेले था।

तभी उसने देखा और कहने लगा – अरे ! मैं स्वप्न तो नहीं देख रहा हूँ ? तुम यहां कैसे ? तुम तो अग्नि में जल गई थी ना – चण्ड चौक पड़ा। उसने देखा कि की बाई और रोज की भांति साथ नाचने को उसकी पत्नी खड़ी है। भीलनी ने कहा अरे- सपना सपना कहेंका? आपके सामने आपकी दासी में ही तो खड़ी हूँ। भीलनी अपने पति से कहती है मुझे तो कुछ स्मरण ही नहीं कि मैं कब आज में जली। झूलनी की बात सुनकर चण्ड को बहुत आश्चर्य हुआ।
वे दोनों अभी इस बात पर चकित ही थी कि तभी उन्होंने देखा एक दिव्य विमान आकाश से उतरा और एक भगवान शंकर के पार्षद ने दोनों से प्रार्थना की – आप लोग कैलाश पधारें। भगवान गंगाधर आपका स्मरण कर रहे हैं। ‘ और आदर पूर्वक दोनों को विमानमें बैठ कर शिव पार्षद उन्हें शिवलोक को ले गये।
ऐसे अद्भुत भक्त हुए भील और भीलनी उनके जीवन में बिना किसी मोह का त्याग, ईश्वर के प्रति निश्चल भक्ति, निस्वार्थ भाव और एक पति पत्नी का एक दूसरे की प्रति त्याग, समर्पण और अलौकिक प्रेम को दर्शाता है
आशा करती हूँ की आपको ऐसे अद्भुत शिव भक्त – भील भीलनी की कथा को पढकर आनंद आया हो और आपको बहुत कुछ सीखने को मिला हो आगे किस भक्त के बारे में पढना चाहेंगे हमें कमेंट में अवश्य बताएं धंन्यवाद।अगर आपको भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं के बारे में सुनना हो तो आप हमारे You tube channel पर जा सकते हैं link – Amrit-Gaatha