भक्त कर्मठी जी का जन्म राजस्थान के बागड़ा क्षेत्र के किसी ग्राम में हुआ था । कर्मठी बाई जी कॉंथड़या कुल के ब्राह्मण श्री पुरुषोत्तम जी की पुत्री थी।
कर्मठी बाई का यथार्थ नाम क्या था ये तो ज्ञात नहीं किन्तु भगवत मुदित जी ने ‘रसिक अनन्यमाल’ में लिखा है की वे विवाह होते ही विधवा हो गयीं और वैधव्य जीवन के जप , तप , व्रत , शुचि , संयम आदि नियमों का कठोरता से पालन करते हुए तपोमय जीवन व्यतीत करने लगीं इसलिए उनका नाम कर्मठी पड़ गया। लोगों का कहना है यह भी है की कर्मठी बाई और करमैती बाई एक हैं किन्तु यह सत्य नहीं है ।
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भक्त कर्मठी जी का कृष्ण प्रेम
कहां जाता है की भक्त कर्मठी बाईजी परम सुंदरी थी उनका बाहरी स्वरूप जैसा सुंदर था वैसा ही आंतरिक स्वरूप भी सुंदर था। वे बालपन से ही प्रभु के प्रेम मेंउन्मत्त रहती थी। प्रभु जिस पर कृपा करते हैं उसका सर्वस्व हरण कर लेते हैं।कर्मठी बाई के पति पहले ही चले गए थे और उनके माता-पिता और सास ससुर का भी देहांत हो गया पतिकुल और पितृकुल दोनों पक्षों में उनका अपना कोई ना रहा।
वे अकेले नितांत और असहाय हो वृंदावन चली गयीं वहां जाकर उन्होंने श्रीहित हरिवंश चंद्र जी से दीक्षा लेकर भजन करने लगीं और सूत काटकर अपना जीवन निर्वाह करती थीं। श्री हित हरिवंश जी की कृपा से उनकी कर्म निष्ठा शांत हो गई। रागानुगा भक्ति का स्रोत उनके हृदय में उमड़ पड़ा। वे हर समय यहां तक की सूत काटते समय भी श्री कृष्णा का नाम स्मरण और उनके नाम का कीर्तन करती रहती थीं। श्री कृष्णा के प्रेम में सदा लगी रहती; गुरु कृपा से उन्होंने अल्पकाल में ही सिद्धि सिद्धि प्राप्त कर ली।
वन में फूल खिलता है और मुरझा कर गिर पड़ता है उसके सौंदर्य और सौरभ को कौन जानता है? ऐसे ही भारत की पुण्य भूमि में न जाने कितने भक्तों का जन्म होता है। और वे अपने आडंबरशून्य एकांत जीवन में साधन कर सिद्ध होते हैं और दिव्य धाम को चले जाते हैं। उनका नाम तक भी कोई नहीं जानता। भक्त कर्मठी बाईजी जी का भी कुछ ऐसा ही था यदि उनके जीवन में एक विशेष घटना न घाटी होती।
कर्मठी बाईजी के जीवन की एक घटना
उस समय सम्राट अकबर के भांजे अजीज बेग मथुरा जिले के हाकिम थे। उनके भाई हसन बेग मथुरा के शासन प्रबंध में उनकी सहायता करते थे। एक दिन हसन बेग वृंदावन का निरीक्षण करने गए। वे जब यमुना तट की शोभा का दर्शन कर रहे थे उनकी दृष्टि पड़ी यमुना में स्नान करती एक परम रूपवती युवती पर। उसकी दृष्टि उस पर टिकी रह गई जब वह युवती स्नान करके जाने लगी उसका लोभी मन भी उसे युवती के साथ चला गया उसने अपने कुछ अनुचरों को भी उसके पीछे भेज दिया पूछताछ कर उसके संबंध में पूरी जानकारी ले आने के लिए।
अनुचरों ने आकर कहा-‘ सरकार उसका नाम कर्मठी बाई है उसके घर वाले सब मर चुके हैं यहां अकेली रहती है सूत काटकर जीवन निर्वाह करती है।’
हसन ने प्रसन्न होकर कहा तब तो बात बन गई उसे थोड़ा प्रलोभन देकर ही बस में किया जा सकता है। अनुचरों ने कहा- “नहीं सरकार वह गरीब है तो क्या बड़ी भक्तिमति है दिन-रात भजन करती है। उसे किसी प्रकार के प्रलोभन से वश में नहीं किया जा सकता। उसके त्याग वैराग्य और सतीत्व कि यहां सभी लोग प्रशंसा करते हैं। यह सब सुन हसन का हर्ष निषाद में बदल गया वह कुछ सोचने लगा । थोड़ी देर बाद उसने पूछा- “अच्छा वह रहती कहां है?”
अनुचरों ने कहा-” वह यमुना तट से कुछ ही दूर एक कुटिया में अकेली रहती हैं”। ” तो ठीक है”, इतना कहकर हसन मन ही मन एक षड्यंत्र की रचना कर डाली। षड्यंत्र को पूरा करने का भार उसने दो कुलटा नारियों पर डाल दिया।
दूसरे दिन वह दोनों स्त्रियां भक्त का वेश बनाकर यमुना स्नान करने के बहाने उसी घाट पर गयी जिस घाट पर कर्मठी बाई स्नान किया करती थी । यमुना स्नान कर तिलक आदि लगाकर वे उस समय कर्मठी बाई के निकट गई। जब कर्मठी बाई स्नान कर अपनी कुटिया को जाने को प्रस्तुत हुई तब उन दोनों स्त्रियों ने अपना परिचय देते हुए कहा हम दोनों बाल विधवा हैं वृंदावन में अमुक स्थान पर रहकर भजन करते हैं। आप शायद कर्मठी बाईजी है हमने आपकी बहुत प्रशंसा सुनी है हम आपके सत्संग का लाभ उठाना चाहतीं हैं।

कर्मठी बाईजी ने कहा मैं ना प्रशंसा के योग्य ना सत्संग के पर मेरे द्वारा यदि आपकी कुछ सेवा बन सके तो उसके लिए मैं प्रस्तुत हूं। दोनों बातें करते-करते कर्मठी बाई के साथ उनकी कुटिया तक चली गई कर्मठी बाई ने उन्हें आदरपूर्वक बैठाया और उनके साथ धर्मल धर्मलाप किया।
वेक उल्टा नारियल नित्य इसी प्रकार यमुना स्नान करने जाती और कर्मठी बाई के साथ उनकी कुटिया पर जाकर सत्संग किया करती। धीरे-धीरे कर्मठी बाई का उनसे स्नेहा हो गया एक दिन कर्मठी बाई की कुटिया पर वे दोनों विलंब से पहुंची तब कर्मठी बाई ने पूछा -“आज इतना विलंब कैसे हुआ ?”
उन दोनों ने कहा – “हमारे घर एक बहुत बड़े महात्मा आए हुए हैं उन्हीं की सेवा में विलंब हो गया।”- ” तो बहनों उन महात्मा के दर्शन मुझे नहीं कराओगी क्या ?” कर्मठी बाई ने उत्सुकता से पूछा। ” क्यों नहीं , क्यों नहीं ? “कल यमुना स्नान करके तुम्हें ले चलेंगे अपने घर।”
दूसरे दिन उन स्त्रियों में से एक कर्मठी बाई को अपने साथ ले जाने के लिए यमुना तट पर आई , दूसरी ने जाकर हसन को इस बात की सूचना दी। पहली स्त्री कर्मठी बाई को अपने घर ले गई भीतर प्रवेश करते ही उसने कर्मठी बाई से कहा -“अरे ! महात्मा जी तो यहां है ही नहीं , लगता है आसपास कहीं चले गए हैं। तुम यहां रुको मैं अभी उन्हें देखकर लाती हूँ। इतना कहकर वह बाहर चली गई और घर का दरवाजा बाहर से बंद कर गई।
उसी समय शिकार को फंसा देख हसन दूसरे कमरे में से निकलकर कर्मठी बाई को देखता हुआ उसके सामने आकर खड़ा हुआ। उसने कहा सुंदरी जिस महात्मा से तुम मिलने आई हो वह मैं ही हूं । मैं कितना शक्तिशाली महात्मा हूं यह तुम इस बात से ही समझ सकती हो कि मैं सम्राट अकबर का भांजा हसन बेग हूँ। बताओ तुम क्या चाहती हो ? मैं तुमसे प्रेम करता हूं। ऐसी कोई वस्तु नहीं जो मैं तुम्हें नहीं दे सकता तुम यदि एक बार कह दो की – मैं तुम्हारी हूं तो मैं अपना सर्वस्व भी तुम्हारे ऊपर न्योछावर कर सकता हूं। तुम्हारा सौंदर्य और यौवन भगवान ने तुम्हें यूं ही बर्बाद करने के लिए नहीं दिया मैं तुम्हें अपने हृदय की रानी बनाना चाहता हूं बोलो तुम क्या चाहती हो ?”
भक्त कर्मठी बाईजी की तपोशक्ति
हसन बेग की नीचिता भरी बातें सुनकर कर्मठी बाई मैं भी और आतंकी सी एक कोने में सिमट कर खड़ी-खड़ी सब सुनती रही कर्मठी बाई ने जब कोई उत्तर न दिया तो हसन उनकी और बढ़ने लगा। उस समय उन्होंने भगवान का स्मरण किया। स्मरण करते ही उनमें न जाने कहां का बल आ गया। वह सिंहनी की तरह गरज उठी-” नीच , नराधम , खड़ा रह वहीँ नहीं तो भस्म कर दूंगी !” उनकी गरज से आकाश कांप गया। हसन का कलेजा भी एक बार दहल गया पर दूसरे क्षण जैसे ही वह उन्हें आलिंगन करने को आगे बढ़ा उसने देखा कि वह कर्मठी को नहीं एक खूंखार सिंह को आलिंगन करने जा रहा है।
उसके सामने उस सुंदरी की जगह जिसे वह अपनी बाहों में लपेटना चाहता था वह सिंह के रूप में उसका काल मुंह बाय खड़ा था। वह सिंह उसे देखकर गुस्से में गुर्रा रहा है जैसे वह उसपर झपटकर उसे अपने दांतों और नुकीले पंजों से चीर देने जा रहा है। वह भय के मारे दरवाजे की और भागा पर भाग कर जाता कहां दरवाजा तो बाहर से बंद था। वह दरवाजे को जोर-जोर से पीट कर चिल्लाने लगा। भय के कारण उसका पजामा पहले ही बिगड़ गया था और वह मूर्छित होकर भूमि पर कर गिर गया।
हसन बेग का पश्चाताप और कर्मठी बाई से क्षमा याचना
मूर्छित हसन बेग न जाने कब तक वहां मूर्छा में पड़ा रहा जब उन कूल्टा नारियों ने आकर दरवाजा खोला तब भी वह मूर्छित था पर उस समय ना वहां कर्मठी थी न सिंह। दोनों नारियों ने चेष्टा कर हसन को सचेत किया सचेत होने पर भी वह भय के मारे कांप जाता और इधर-उधर देख और देख-देखकर चीख पड़ता और बेहोश हो जाता ना जाने उसे भय के मारे या कल्पना में उसे वहीं सिंह बार-बार दिख जाता था और वह बार-बार मूर्छित हो जाता था।
बहुत देर बाद जब वह कुछ स्वस्थ हुआ तब वह अपने किए पर पश्चाताप करने लगा। वह सोचने लगा कि कर्मठी बाई जी मानवी नहीं देवी है उनके क्षमा किए बिना मेरे जीवन की रक्षा नहीं। पर कर्मठी बाई यकायक गायक कैसे हो गई ? अब वह कहीं हैं भी या नहीं ? अगर है तो उनके निकट जाने पर कहीं वह सिंह फिर से प्रकट होकर कहीं खा तो नहीं जाएगा ?यह प्रश्न एक साथ उसके दिमाग में घूमने लगा।
उसने उन्ही दोनों नारियों को आज्ञा दी फिर उनके पास जाकर उनका सम्वाद ले आने की। वे दोंनो कुलटाएं भयभीत थी और कर्मठी बाई के पास जाने का साहस नहीं कर पा रहीं थी। पर हसन की आज्ञा की अवहेलना भी नहीं कर सकती थीं । डरते डरते उसके पास गयीं उन्हें प्रणाम कर दूर ही बैठ गयी। कर्मठी बाई ने उसके प्रति ऐसा व्यव्हार किया जैसे उन्हें उस सारी घटना का स्मरण ही नहीं और उनके मन में किसी प्रकार का क्रोध भी नहीं था।
उन दोनों स्त्रियों ने लौटकर जब हसन को सारा संवाद सुनाया तोह हसन बहुत सारा धन लेकर भक्त कर्मठी बाईजी के पास गया। कर्मठी बाई से क्षमा मांगकर उन्हें धन देना चाहा किन्तु उन्होंने धन को स्वीकार नहीं किया। बल्कि उन्होंने किसी नारी पर कुदृष्टि न डालने का वचन लेकर उसे क्षमा कर दिया।
आशा करती हूँ आपको ये कथा पढकर आनंद आया हो और आपको भक्ति के कुछ गुण सीखने को मिला हो आगे किस भक्त के बारे में पढना चाहेंगे हमें कमेंट में बताएं धंन्यवाद।
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