गंधर्वराज पुष्पदंत

शिवमहिम्नस्त्रोतकी रचना करने वाले परम शिव भक्त गंधर्वराज पुष्पदंत हैं। बहुत पहले की बात है पुष्पदंत नाम के एक गंधर्व रहतें थें। गंधर्व शक्तिशाली जादुई प्राणी थे जो उड़ सकते थे तथा अदृश्य भी हो सकते थे। पुष्पदंत भगवान शिव के प्रबल भक्त थें। वह एक महान विद्वान और कवि थें। उनके गायन कौशल के कारण देवों के राजा इंद्र के दरबार में उन्हें एक दिव्य गायक के रूप में नियुक्त किया गया था। पुष्पदंत को विभिन्न प्रकार के पुष्पों से भगवान शिव की आराधना करना अत्यंत प्रिय था।

एक बार गंधर्वराज पुष्पदंत विश्व भ्रमण करते हुए राजा चित्रार्थ के राज्य में पहुंचे। राज्य की सुंदरता को देखकर पुष्पदंत आश्चर्यचकित हो गयें। धीरे-धीरे जैसे उन्होंने राज्य का भ्रमण किया, तो वे यह देखकर अचंभित हो गयें कि राज्य सुन्दर बगीचों और पुष्पों से घिरा हुआ है। वे चित्रार्थ के महल में गए और वहां और भी अधिक सुन्दर पुष्पों को देखकर आश्चर्यचकित रह गए। जब पुष्पदंत ने बगीचे को देखा, तो वह स्वयं को रोक नहीं पाए। उन्होंने भगवान शिव की आराधना हेतु कुछ पुष्पों को तोड़ लियें।

गंधर्व राज पुष्प दांत अब प्रतिदिन प्रातःकाल राजा के उपवन से ताजे पुष्प तोड़ लिया करते थे। राजा पुष्प को न पाकर मालियों को कठोर दंड दिया करता था। मालियों ने बड़े-बड़े प्रयत्न किए परंतु पुष्प ले जाने वाले का पता ही नहीं लगा पाते। और लगाते भी कैसे, पुष्पदंत तो पुष्पों को लेकर अदृश्य हो जाते थे। उनके पास दैवीय शक्तियां थीं। तत्पश्चात, सब के सब इस निर्णय तक पहुंचे कि पुष्प ले जाने वाला उपवन में आता है किसी विशेष शक्ति की कृपा से अदृश्य हो जाता है।

पुष्पदंत को पकड़ने की योजना

राजा ने अपने सैनिकों को बुलाया और उपवन के चारों ओर शिव निर्माल्य फैला देने के लिए आदेश दिया। (बेलपत्र) और उन सब ने ऐसा ही किया। उपवन के चारों तरफ बेलपत्र को फैला दिया ताकि बेलपत्र को लांघते ही चोर की अदृश्य होने की शक्ति क्षीण हो जाएगी। ऐसा ही हुआ। गंधर्वराज पुष्पदंत ने निर्माल्य का उल्लंघन (बेलपत्र पैरों के नीचे आना या लांघना) कर दिया, जिस वजह से उनकी अदृश्य होने की शक्तियां क्षीण हो गईं। मालियों ने उन्हें देख लिया और उन्हें पकड़कर कारागार में डाल दिया।

शिव महिमा स्त्रोत की रचना एवं गंधर्व राज को भगवान शिव के दर्शन

गंधर्वराज पुष्पदंत को जब ज्ञात हुआ कि उन्होंने शिव निर्माल्य को लांघकर बहुत बड़ा अपराध किया है, तब उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए और उनकी दया प्राप्त करने का दृढ़ संकल्प किया। एक दीन-हीन की तरह असमर्थ, सर्वथा विवश होकर गंधर्वराज ने भगवान शिव का कारागार में स्मरण किया। अपराध मार्जन का एकमात्र उपाय शिव आराधना ही था। उन्होंने भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए कारागार में ही शिव महिमा स्त्रोत रचा। भक्त ने सच्चे हृदय से पुकारा था। योगियों की अखंड समाधि, मुनियों और ध्यानी ज्ञानियों की तपस्या की भी उपेक्षा कर देने वाले भगवान आशुतोष शंकर भक्त की पुकार पर दौड़ पड़े।

गंधर्वराज पुष्पदंत को भगवान शिव के दर्शन
गंधर्व राज पुष्पदंत को भगवान शिव के दर्शन

कारागार में एक दिव्य प्रकाश छा गया। गंधर्व राज पुष्पदांत ने देखा कि भगवान शिव के मस्तक पर गंगा मुस्कुरा रहीं हैं। कंठ नीला है और गौर वर्ण पर सर्पों की माला बड़ी सुंदर लग रही है। गज की खाल से प्रतिक्षण उनकी सुंदरता बढ़ती जा रही है। लोक लोकांतर की समस्त संपदा उनके चरणों पर लोट रही है। भगवान शिव के साक्षात्कार ने उनकी भीषण तपस्या को सफल कर दिया। उनका अपराध मिट गया। उन्होंने अनेक प्रकार से उनकी स्तुति की।

गंधर्वराज ने चरण-धूलि मस्तक पर चढ़ाकर निवेदन किया–‘भगवन! आपकी अनंत महिमा को ना जानते हुए यदि मेरी स्तुति अनुचित है, तो सर्वज्ञ ब्रह्मा आदि की वाणी भी तो पहले आपके स्तुति यशः स्तवन में थक चुकी है। ऐसी अवस्था में स्तुति करने वाले पर कोई दोष नहीं लगाया जा सकता। आपके स्रोत में मेरा उद्योग अखंड और निर्विघ्न हो।’ भगवान शिव ने अपने भक्त को अभय दान दिया और उनके जन्म-जन्म के बंधन कट गए।

गंधर्व राज पुष्प दांत की गणना महान शिव भक्तों में की जाती है। उन्होंने प्रभास क्षेत्र में पुष्प दंतेश्वर शिवलिंग की स्थापना की थी। उन्होंने शिव महिमा स्त्रोत के रूप में जो साहित्य दान किया है, उससे असंख्य जीवों का कल्याण हो रहा है। शिव महिमा स्त्रोत के साथ ही साथ परम भक्तप्रवर गंधर्वराज पुष्प दांत का भी नाम अमिट और अमर है।

आशा करती हूँ आपको ये कथा पढकर आनंद आया हो और आपको बहुत कुछ सीखने को मिला हो आगे किस भक्त के बारे में पढना चाहेंगे हमें कमेंट में बताएं धंन्यवाद।

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