जगन्नाथ भक्त मणिदास माली

आज की कथा भक्त चरितांक ग्रंथ से ली गई एक माली भक्त की कथा है जो जगन्नाथ जी के परम भक्त हुऐं मणि दास माली। भक्त मणि दास का चरित्र दीन दुःखीं-प्राणियों के प्रति दया का भाव रहता था। तो आज आप जानेंगे जगन्नाथ भक्त मणि दास जी के जीवन के बारे में।

जगन्नाथ पुरी धाम में मणि दास नाम की एक माली रहते थे इनके जन्म की तिथि का ठीक-ठाक पता नहीं है किंतु संत बताते हैं की मणि दास जी का जन्म संवत 1600 साल के लगभग जगन्नाथ पुरी में हुआ था। मणि दास एक माली थे और वे फुल मन बेचकर उसमें से जो कुछ भी मिलता था उसमें से साधु ब्राह्मणों की सेवा भी करते , दीन-दुखियो और भूखों को भी दान करते थे। मणि दास जी अक्षर ज्ञान प्राप्त तो नहीं किया था परंतु उनके पास सच्ची शिक्षा आवश्यक थी उनका अद्भुत भाव था की दीन दुखी-प्राणियों पर दया करनी चाहिए और दुष्कर्मों का त्याग करके भगवान का भजन करना चाहिए।

ईश्वर के प्रति मणि दास का सुंदर भाव

कुछ समय बाद मणि दास के स्त्री पुत्रों का एक-एक करके परलोकवास हो गया जो संसार के विषय में आसक्त मोह-माया में लिप्त प्राणी है वे संपत्ति तथा परिवार का नाश होने पर दुखी होते हैं और भगवान को दोष देते हैं किंतु उसके विपरीत ईश्वर के प्रति मणि दास का सुंदर भाव था उन्होंने भगवान की कृपा मानकर सोचा कि मेरे प्रभु कितने दयामय है कि उन्होंने मुझे सब ओर से बंधन मुक्त कर दिया मेरा मन स्त्री पुत्रों को अपना मानकर उनके मोंह में फंसा रहता था। श्री हरि कृपा करके मेरे कल्याण के लिए अपनी वस्तुएं लोटा लीं मैं मोह रूपी मदिरा से मतवाला होकर अपने सच्चे कर्तव्य को भूला हुआ था अब तो जीवन का प्रत्येक क्षण प्रभु के स्मरण में ही लगाऊंगा।

मणि दास की भक्ति

जगन्नाथ भक्त मणिदास माली
जगन्नाथ पूरी

परिवार की मृत्यु के पश्चात मणि दास जी अब साधु के वश में अपना सारा जीवन भगवान के भजन में ही बिताने लगे हाथों में करताल लेकर प्रातः काल ही स्नान आदि करके श्री जगन्नाथ जी के सिंहद्वार पर आकर कीर्तन प्रारंभ कर देते थे। कभी-कभी प्रेम में उन्मत्त होकर नाचने लगते थे। मंदिर के द्वार खुलने पर भीतर जाकर श्री जगन्नाथ जी की मूर्ति के पास गरुड़- स्तंभ के पीछे खड़े होकर देर तक अपलक नेत्रों से दर्शन करते रहते और फिर साष्टांग प्रणाम करके कीर्तन करने लगते थे। कीर्तनके समय मणि दास को शरीर की सुधि ही भूल जाती थी। कभी नृत्य करते कभी खड़े रह जाते कभी गाते , स्तुति करते या रोने लगते कभी प्रणाम करते कभी जय जयकार करते और कभी भूमि में लोटने लगते थे। उनके शरीर में अश्रु , स्वेद ,कम्प , रोमांच आदि आठों सात्विक भावों का उदय हो जाता था।

भक्त मणि दास पर कथावाचकों का क्रोध

तब के समय में श्री जगन्नाथ जी के मंदिर में मंडप के एक भाग में नित्य पुराण की कथा हुआ करती थी कथा वाचक जी विद्वान तो थे पर भगवान की भक्ति उनमें नहीं थी। वह कथा में अपनी प्रतिभा से ऐसे-ऐसे भाव बताते थे कि श्रोता मुग्द हो जाते थे। एक दिन कथा हो रही थी पंडित जी कोई अद्भुत भाव बता रहें थें कि इतने में करताल बजता ‘राम-कृष्ण-गोविंदा हरि’ की उच्च ध्वनि करता मणि दास वहां आ पहुँचा।

जगन्नाथ भक्त मणिदास माली
जगन्नाथ जी

मणि दास जगन्नाथ जी के दर्शन करते ही बेसुध हो गए उन्हें पता नहीं की कहां कौन बैठा है या क्या हो रहा है वह तो उन्मत्त होकर राम नाम ध्वनि करते हुए नाचने लगे कथावाचक जी को उनका यह ढंग बहुत बुरा लगा उन्होंने डांट कर मणि दास को जाने के लिए कहा परंतु मणि दास तो अपनी धुन में थे। उनके कान कुछ सुन नहीं रहे थे कथावाचक जी को क्रोध आ गया कथा में विघ्न पढ़ने से श्रोता भी उत्तेजित हो गए मणि दास पर गलियों के साथ-साथ थप्पड़ भी पढ़ने लगे। जब मणि दास को ब्रह्मज्ञान हुआ , तब वह भौचक्का रह गए। सब बातें समझ में आने पर उनके मन में प्रणय कोप जागा उन्होंने सोचा — ‘जब प्रभु के सामने ही उनकी कथा कहने तथा सुनने वाले मुझे मारते हैं तब मैं वहां क्यों जाऊं?’

पूरी नरेश को जगन्नाथ जी का आदेश

कहते हैं जो प्रेम करता है उसी को रूठने का भी अधिकार है मणि दास आज जगन्नाथ जी से रूठ कर भूखा-प्यासा एक मठ में दिन भर पड़े रहें। मंदिर में संध्या आरती हुई पट बंद हो गए पर मणि दास आया नहीं रात्रि को द्वारा बंद हो गये। पूरी नरेश ने उसी रात्रि स्वप्न में जगन्नाथ जी के दर्शन किए। प्रभु कह रहे थे — ‘ तू कैसा राजा है मेरे मंदिर में क्या होता है तुझे इसकी भी खबर नहीं रहती मेरा भक्त मणि दास नित्य मंदिर में करताल बजाकर नृत्य किया करता है तेरे कथावाचक ने उसे आज मार कर मंदिर से निकाल दिया।

उसका कीर्तन सुने बिना मुझे सब फीका जान पड़ता है मेरा मणि दास आज मठ में भूखा-प्यासा पड़ा है तू स्वयं जाकर उसे संतुष्ट कर अबसे उसके कीर्तन में कोई विघ्न नहीं होना चाहिए। कोई कथा वाचक आज से मेरे मंदिर में कथा नहीं करेगा मेरा मंदिर तो मेरे भक्तों के कीर्तन के लिए सुरक्षित रहेगा कथा अब लक्ष्मी जी के मंदिर में होगी।

जगन्नाथ द्वारा मणि दास को महाप्रसाद मिलना

मठ में पड़े मणि दास ने देखा किकरोड़ों सूर्योंके के समानशीतल प्रकाश चारों ओर फैल गया है स्वयं जगन्नाथ जी प्रकट होकर उसके सिर पर हाथ रखकर कह रहे हैं — ‘बेटा मणिदास तू भूखा क्यों है देख तेरे भूखे रहने से मैंने भी आज उपवास किया है। उठ तू जल्दी से भोजन तो कर ले तत्पश्चात भगवान अंतरध्यान हो गए मणि दास ने देखा कि महाप्रसाद का थाल सामने रखा है उसका प्रणय रोष दूर हो गया फिर मणि दास ने प्रसाद को ग्रहण किया।

जगन्नाथ भक्त मणिदास माली

उधर राजा की निद्रा टूटी तो घोड़े पर सवार होकर वह स्वयं जांच करने मंदिर पंहुचा पता लगाकर मठ में मणि दास के पास गए मणि दास में अभियान तो था ही नहीं वह राजी हो गई हो गए । राजा ने मणि दास का सत्कार किया करताल लेकर मणि दास स्तुति करता हुआ श्रीजगन्नाथ जी के सम्मुख नृत्य करने लगें उसी दिन से जगन्नाथ मंदिर में कथा का बांचना बंद हो गया। कथा अब तक श्री जगन्नाथ जी के मंदिर के नैऋत्य कोणमें स्थित श्री लक्ष्मी जी के मंदिर में होती है।

मणि दास जीवन भर वहीँ कीर्तन करने लगें अंतमें मणि दास 80 वर्ष की आयु में जग्गंनाथ जी की सेवा के लिए वे उनके दिव्या धाम पधारे। ऐसे थें यें जगन्नाथ भक्त मणिदास माली।

आशा करती हूँ आपको ये कथा पढकर आनंद आया हो और आपको बहुत कुछ सीखने को मिला हो आगे किस भक्त के बारे में पढना चाहेंगे हमें कमेंट में बताएं धंन्यवाद।

अगर आपको भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं के बारे में सुनना हो तो आप हमारे You tube channel पर जा सकते हैं link – Amrit-Gaatha

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